तात्या टोपे के जीवन परिचय, इतिहास,महत्वपूर्ण घटनाक्रम और योगदान |Tatya Tope Biography, History, Birth, Details In Hindi

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तात्या टोपे के जीवन परिचय, इतिहास,महत्वपूर्ण घटनाक्रम और योगदान |Tatya Tope Biography, History, Birth, Details In Hindi

तात्या टोपे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 23 अप्रैल 1814 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। उनका असली नाम रामचंद्र पंत था, लेकिन उन्हें तात्या टोपे के नाम से प्रसिद्ध किया जाता है। उन्होंने पेशवा बाजीराव द्वितीय के शिवाजी राज्य को पुनः स्थापित करने के लिए संग्राम किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ा।

उनकी सर्वश्रेष्ठ योजनाओं में से एक थी कानपूर की घटना, जिसमें उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश के खिलाफ लड़ा। उन्हें 8 अप्रैल 1859 को कानपूर में फांसी की सजा सुनाई गई। तात्या टोपे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण संग्रामी थे जिनका योगदान आज भी याद किया जाता है।

तात्या टोपे की जीवनी

रामचंद्र पांडुरंग येवलकर (तात्या टोपे)

  • जीवनी: रामचंद्र पांडुरंग येवलकर, जिन्हें आमतौर पर तात्या टोपे के नाम से जाना जाता है, का जन्म 1814 ई. में महाराष्ट्र के पटौदा जिले में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम रुक्मिणी बाई और पाण्डुरंग त्र्यम्बक था। तात्या टोपे ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ा।
  • संघर्ष: तात्या टोपे ने 1857 की भारतीय विद्रोह के दौरान कानपूर की घटना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संग्राम किया और विद्रोह के दौरान कई सैनिकों के साथ मिलकर लड़ा।
  • मृत्यु: तात्या टोपे की मृत्यु की तारीख 18 अप्रैल 1859 है, जोकि मध्य प्रदेश के शिवपुरी में हुई।
  • पेशा: तात्या टोपे को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई।
  • भाषा: तात्या टोपे की भाषा की जानकारी हिंदी और मराठी थी।तात्या टोपे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिनका योगदान आज भी याद किया जाता है।

तात्या टोपे का नाम कैसे पड़ा

तात्या जब बड़े हो गए थे, तो पेशवा ने उन्हें अपने साथ मुंशी के रूप में रख लिया था। उन्होंने पेशवा के यहां काम किया, लेकिन वहां काम करते समय उन्हें आनंद नहीं आया। उन्हें एक अवसर पर राज्य के एक भ्रष्ट कर्मचारी को पकड़ा। उनके यह कार्य से पेशवा ने उन्हें सम्मानित किया और उन्हें एक टोपी भी दी। इस सम्मान के कारण, उनका नाम “तात्या टोपे” पड़ गया। लोगों द्वारा उन्हें “तात्या टोपे” कहा जाने लगा।

साल 1857 के विद्रोह में तात्या टोपे की भूमिका (Tatya Tope Role In The 1857 Rebellion)

1857 का भारतीय विद्रोह भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस विद्रोह में तात्या टोपे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया। उन्होंने कानपूर, ज़बलपुर, ग्वालियर, और इंदौर जैसे कई स्थानों पर विद्रोह को नेतृत्व दिया।

उनका संघर्ष उस समय के विपक्षी ताकतों के साथ हुआ, जब ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह का प्रकार हो रहा था। उन्होंने अपनी अद्वितीय योजनाओं के माध्यम से ब्रिटिश सेना को कई बार पराजित किया। तात्या टोपे की भूमिका ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक सकारात्मक मोड़ पर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका योगदान आज भी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।

अंग्रेजों के नाक में कर दिया था दम

भारत के कई हिस्सों में उन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया।खास बात ये थी कि अंग्रेजी सेना उन्हें पकड़ने में नाकाम रही थी।तात्या ने तकरीबन एक साल तक अंग्रेजों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी।8 अप्रैल 1959 को वो अंग्रेजों की पकड़ में आ गए।15 अप्रैल, 1959 को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया।

उसके बाद 18 अप्रैल को शाम 5 बजे हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फांसी पर लटका दिया गया।लोगों द्वारा उनकी फांसी पर भी कई सवाल उठाए गए थे।तात्या टोपे से जुड़े नए तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब ‘टोपेज ऑपरेशन रेड लोटस’ के लेखक पराग टोपे ने बताया कि शिवपुरी में 18 अप्रैल 1859 को तात्या को फांसी नहीं दी गई थी।

बल्कि गुना जिले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेजों से लोहा लेते हुए एक जनवरी 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।

झांसी को कराया था मुक्त

  • झांसी को चारों तरफ से घेर लिया गया था: ब्रितानी सैनिकों ने झांसी को चारों ओर से घेर लिया था।
  • झांसी को बचाना जरूरी था: झांसी को बचाना जरूरी था क्योंकि उसका महत्व अत्यधिक था।
  • तात्या टोपे को यह अहम जिम्मेदारी सौंपी थी: तात्या टोपे को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
  • कानपुर के नजदीक काल्पी से तात्या टोपे अपनी सेना के साथ तेजी से झांसी की ओर बढ़ रहे थे: तात्या टोपे ने कानपुर के नजदीक स्थित काल्पी से अपनी सेना के साथ झांसी की ओर तेजी से बढ़ते हुए कहा।
  • तात्या टोपे की सेना बहुत बहादुरी से लड़ी: तात्या टोपे की सेना ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया।
  • तात्या ये युद्ध नहीं जीत सके थे: तात्या टोपे इस युद्ध को नहीं जीत सके थे।
  • इस युद्ध ने झांसी के लोग बेहद उत्साहित हो गए थे: इस युद्ध ने झांसी के लोगों को बेहद उत्साहित किया था।

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वहीं, जब पेशवा झांसी पर कब्जा करने में नाकाम रहे तब रानी लक्ष्मी बाई के पास झांसी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।वे लोग ब्रिटिश सेना को चकमा देते हुए काल्पी की ओर बढ़े।

काल्पी में भी झांसी की रानी और तात्या टोपे की ब्रिटिश सैनिकों से भिड़ंत हुई, लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली थी।इसके बाद उनकी सेना ग्वालियर की ओर बढ़ने लगी।

जब ग्वालियर की सेना हार गई तो ग्वालियर के राजा ने धौलपुर के रास्ते आगरा जाकर शरण ले ली।ग्वालियर की सारी शाही संपत्ति पर कब्जा जमाकर तात्या ने इससे सैनिकों को वेतन दिया और उसके बाद अंग्रेजों से ग्वालियर की सुरक्षा करने का काम शुरू किया।जब ब्रितानी सैनिकों को मालूम पड़ा कि पेशवा, झांसी की रानी और तात्या टोपे ग्वालियर में हैं, तब वे ग्वालियर की ओर बढ़ने लगे।

17 जून, 1858 को ब्रितानी सैनिक ग्वालियर के नजदीक पहुंच गए और यहां पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से सीधे युद्ध में लड़ी और वीरगति को प्राप्त हो गईं।रानी लक्ष्मीबाई की मौत की खबर के बाद युद्ध के मैदान का पूरा नजारा ही बदल चुका था।ग्वालियर पर पेशवाओं की जीत क्षणिक साबित हुई।नाना साहेब के भतीजे रावसाहेब, तात्या टोपे और बांदा के नवाब अली बहादुर सब ग्वालियर से लापता हो गए।

इससे पहले 10 जून को रानी लक्ष्मीबाई और अली बहादुर को पकड़ने पर ब्रिटिश सेना ने दस-दस हजार रुपए के इनाम की घोषणा की थी।रानी लक्ष्मीबाई के निधन के बाद तात्या टोपे और राव साहेब को भी पकड़ने पर दस- दस हजार रुपए के इनाम की घोषणा की गई थी।

राव साहेब ने आत्मसमपर्ण की पेशकश की लेकिन ब्रितानी अधिकारियों ने उन्हें ब्रिटिशों के खिलाफ षड्यंत्र में शामिल होने की स्थिति में किसी तरह की रियायत देने से इनकार कर दिया था।

*ऐसी स्थिति में उन्होंने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया।**अली बहादुर ने ब्रिटिशों के सामने आत्म समर्पण कर दिया और उन्हें इंदौर में पेंशन के साथ भेजा गया।लेकिन तात्या टोपे और राव साहेब ने लगातार संघर्ष को जारी रखा।

ग्वालियर के बाद कहां गए तात्या टोपे

ग्वालियर से निकलने के बाद, तात्या टोपे ने चालाकी और सूझबूझ से अपनी यात्रा की योजना बनाई।उन्होंने पहले राजपूताना फिर मालवा और थोड़ा समय गुजरात में भी बिताया।ग्वालियर से निकलने के बाद उन्होंने मथुरा और फिर राजस्थान का मार्ग चुना।

उन्होंने पश्चिम की ओर गए, फिर दक्षिण की ओर मुड़े।टोंक जिले के सवाई माधोपुर के बाद, वे पश्चिम की ओर बूंदी ज़िले की तरफ बढ़े।फिर भीलवाड़ा और गंगापुर जाकर उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी।

वापसी के दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश के झालरापाटन तक पहुंचने का फैसला किया।उन्होंने यात्रा के दौरान आदिवासी लोगों के बीच भी रहा।इस समय में, उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष को बंद न करने के लिए प्रयास किए।

चलिए जानते हैं तात्या टोपे के बारे में कुछ विशेष बातें

पेशवाई की समाप्ति के बाद बाजीराव ब्रह्मावर्त विदेश चले गए।वहां तात्या ने पेशवाओं की राज्यसभा में पदभार संभाला।1857 की क्रांति के समीप आते हुए, वे नानासाहेब पेशवा के प्रमुख सलाहकार बने।

तात्या ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।3 जून 1858 को रावसाहेब पेशवा ने तात्या को सेनापति बनाया।

एक भारी राज्यसभा ने उन्हें रत्नजड़ित तलवार से सम्मानित किया।तात्या ने रानी लक्ष्मीबाई के वीरगति के बाद गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाई।तात्या टोपे ने गुना, चंदेरी, ईसागढ़, और पोहरी में युद्ध किया।

7 अप्रैल 1859 को तात्या शिवपुरी-गुना के जंगलों में धोखे से पकड़े गए।अंग्रेजों ने उन्हें तत्काल मुकदमा चलाया और 15 अप्रैल को फांसी की सजा सुनाई।

18 अप्रैल 1859 को तात्या शिप्री दुर्ग के पास फांसी पर चढ़ाई गई।उसी दिन, उन्होंने अपने गले में फंदा डालते हुए मातृभूमि के लिए न्यौछावरता दिखाई।

FAQ

1. तात्या टोपे का जन्म कब हुआ था?

तात्या टोपे का जन्म 1814 में हुआ था।

2. तात्या टोपे का पूरा नाम क्या था?

तात्या टोपे का पूरा नाम रामचंद्र पांत अमटे था।

3. तात्या टोपे का विद्रोह कब हुआ था?

तात्या टोपे का विद्रोह 1857 में हुआ था, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है।

4. तात्या टोपे की शहादत कब हुई?

तात्या टोपे की शहादत 1859 में हुई थी।

5. तात्या टोपे के किस प्रकार के कार्य थे?

तात्या टोपे ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया।

6. तात्या टोपे की महत्वपूर्ण भूमिका क्या थी?

तात्या टोपे ने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक बने।

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By Amit Singh

Amit Singh is in Freelancer since last 6 years. In the year 2016, He entered the media world. Has experience from electronic to digital media. In her career, He has written articles on almost all the topics like- Lifestyle, Auto-Gadgets, Religious, Business, Features etc. Presently, Amit Kumar is working as Founder of British4u.com Hindi web site.

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